चाणक्य के अनुसार ऐसे पुरूषों में होती है कामवासना की अधिकता
चाणक्य नीति’ भारतीय इतिहास और संस्कृति की ऐसी अनमोल निधि है, जिस पर हम भारत के नागरिक गर्व से मस्तक ऊंचा करके इस बात को कह सकते है कि भारतीय दार्शनिक, चिंतक, विचारक और लेखक यूनान के विद्वानो से किसी भी तरह कम नहीं रहे। लगभग दो हजार चार सौ वर्ष पूर्व नालन्दा विश्वविद्यालय के आचार्य चाणक्य ने उस काल की व्यवस्था का वर्णन अपनी ‘चाणक्य नीति’ में किया है, जिसके द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्रहीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है।
वहीं उन्होंने ये भी बताया है कि किस तरह के पुरूषों में कामवासना की अधिकता पाई जाती है। वहीं आचार्य चाणक्य का कहना है कि जो भी पुरूष हमेशा बस इसी उम्मीद में रहते हैं कि कब कैसे किसी महिला को रिझाया जाए या फिर कैसे उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया जाए। इनका यही मकसद होता है कि वो हर समय महिलाओं से जुड़ें रहें।
ऐसे व्यक्ति खुद को सुंदर दिखाने के लिए हर तरह का श्रृंगार भी करते हैं और जब इन्हें वो स्त्री मिल जाती है तो वो उसे त्याग देते हैं इसलिए ध्यान रहे कि ऐसे पुरूषों से महिलाओं को बच कर रहना चाहिए। ठीक इसके विपरीत जो पुरूष अच्छे वस्त्र आभूषण आदि के शौकीन नहीं होते हैं वो कभी इस तरह का विचार नहीं रखते हैं।
चाणक्य निती में एक श्लोक का जिक्र किया गया है. नि:स्पृहो नाधिकारी स्यान्नाकामो मण्डनप्रिय:। नाविदग्ध: प्रियंब्रूयात स्पष्टवक्ता न वचक:।।
इस श्लोक में बताया गया है कि जो पुरूष बड़ा बनाने का लक्ष्य निर्धारण करता है और ऐसे काम करता है जिससे उसे समाज में मान सम्मान की प्राप्ति हो वही अधिकार प्राप्त करता है।
अाचार्य के अनुसार जो भी व्यक्ति मीठी मीठी वाणी नहीं बोलते हैं वो मूर्ख होते हैं क्योंकि मुर्ख व्यक्ति हमेशा तीखे व कड़वे वचन का ही प्रयोग करता है। वहीं मुर्ख व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में सुख नहीं देता है वो हमेशा ही परेशानी का कारण बन जाता है। साफ साफ व बिना घुमा फिराकर बात करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं दे सकता है क्योंकि उसका मन बिल्कुल साफ होता है। आचार्य ने स्त्री और पुरुष के संबंधो के बारे में बहुत से विचार रखे हैं जो आज के जीवन में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।