31 साल बाद आईएएस अधिकारी बनकर इस बेटी ने लिया अपने पिता की मौत का बदला, कहानी जानकर भर आएंगी आखें

आज हम एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपकी आंखे तो भर आएंगी लेकिन आपके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्‍बा अगर सो गया होगा तो वो भी जाग जाएगा। जी हां आज जिस लड़की और मां की कहानी हम बताने जा रहे हैं उसके बारे में जानकर आपको भी उसे सलाम करने का दिल करेगा। दरअसल हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी लड़की की कहानी जो अपने बचपन के दिनों से ही अपनी जिम्‍मेदारियों को समझने लगी थी जिस उम्र में बच्‍चे खेलते हैं उस उम्र में वो अपनी मां विभा के साथ दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट के चक्‍कर लगती थी।

दरअसल उसकी मां विभा भी एक साहसी और मजबूत सिंगल मदर साबित हुई उसने अपना पूरा जीवन बच्‍चों में लगा दिया उसके पति डीएसपी केपी सिंह थें जिनकी मृत्यु के बाद उसने अपने बच्‍चों को बड़ी बहादुरी से बड़ा किया। पति की मृत्यु के बाद विभा को वाराणसी के ट्रेज़री में नौकरी मिली और इस नौकरी के बल पर उसने अपनी दोनों बेटियों किंजल और प्रांजल की शिक्षा दिक्षा संपन्‍न की और साथ ही अपने पति के लिए न्याय की तलाश में भी लगी रहीं। करीब 31 साल तक सब कुछ ऐसा ही चलता रहा लेकिन उसे न्याय नहीं मिल गया। इनके पति की मृत्‍यु एक मुठभेड़ में हुई थी।

लेकिन इनकी बेटी किंजल जो उनके साथ अपने घर से दिल्ली सुप्रीम कोर्ट तक आने जाने का जिम्‍मा उठाया था उसने कड़ी मेहनत कर अपनी पढाई भी पूरी की और फिर लेडी श्री राम कॉलेज में प्रवेश लिया लेकिन एक बार फिर इन दोनों बहनों के किस्‍मत ने इन्‍हें धोखा दे दिया अचानक जांच में पता चला की उनकी मां को कैंसर है वो पहले ही अपने पिता को खो चुकी थी लेकिन अब मां को नहीं खोना चाहती थी इसलिए जब उनकी मां को यकीन हो गया कि उनकी दोनों बेटियां IAS अधिकारी बनने जा रही हैं और दोनों अपने पिता की मृत्यु के लिए न्याय प्राप्त कर सकेंगीं तो वो शांति से मर सकीं।

किंजल बताती है कि मुझे अपने पिता पर गर्व है जो एक ईमानदार अधिकारी थे और मेरी माँ जो एक मजबूत सिंगल पेरेंट थी उन्‍होंने अंतिम सांस तक अपने पति के न्‍याय के लिए लड़ाई लड़ी। आज किंजल एक आईएएस अधिकारी बनकर उन्‍होंने अपनी मां का ये सपना पूरा किया। 2013 में संघर्ष के 31 साल बाद लखनऊ में CBI की विशेष अदालत ने उनके पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या के सभी 18 अपराधियों को दंडित किया।

किंजल ने उस समय तो बहुत कुछ नहीं कहा था, लेकिन बाद में उन्होंने एक अखबार से अपने साक्षात्कार में कहा था, मैं मुश्किल से ढाई महीने की रही होउंगी, जब मेरे पिता की हत्या कर दी गयी थी। मेरे पास उनकी कोई यादें नहीं हैं। लेकिन मुझे याद है, कि 2004 में कैंसर से मृत्यु होने तक अनेकों बाधाओं के बावजूद मेरी मां ने न्याय के लिए अपना संघर्ष जारी रखा था।

मुझे यकीन है, कि यदि वो आज जिंदा होतीं तो उन्हें बहुत ख़ुशी और संतोष मिलता।  इन दोनों बहनों का दृढ़संकल्प इतना मजबूत था, कि इसने पूरी न्याय व्यवस्था को हिलाकर रख दिया।